विवेक शुक्ला
पुराना किला परिसर में सन 1541 में बनी मस्जिद किला-ए-कुहना दो बादशाहों से रिश्ता रहा। इसके निर्माण में दोनों का योगदान रहा। हालांकि ये एक-दूसरे लड़े भी। शेरशाह सूरी ने इसका निर्माण अपने निजी इस्तेमाल के लिए किया था। हालांकि ये तामीर होनी शुरू हुई थी हुमायूं के दौर में। इस पर कुरान शरीफ की सूरतें अंकित हैं। इसी परिसर में मस्जिद खैरुल मनाजिल भी है। इसे पूरी तरह से उसी शेरशाह सूरी ने बनवाया था, जिसने भारत को जीटी रोड दिया था। उस वक्त इस मार्ग को सड़क-ए-आजम नाम से जाना जाता था।
शेरशाह सूरी का ‘शेरगढ़’ : आप कह सकते हैं कि मुगल साम्राज्य को सन 1540 में तगड़ा झटका शेरशाह सूरी ने दिया। उसने हुमायूं को युद्ध में परास्त कर दिल्ली पर कब्जा जमाया। शेरशाह सूरी ने यहां एक अन्य शहर को बसाया। उसका नाम दिया ‘शेरगढ़’। शेरगढ़ के अवशेष आज भी पुराना किला में मिलते हैं। शेरगढ़ तीन दरवाजों से घिरा था। ये तीनों लाल बलुआ पत्थर से बनवाए गए थे। शेरगढ़ का निर्माण का कार्य 1540 में चालू हुआ था। इधर ही शेरशाह सूरी गेट भी है, जिस पर पिछले कई सालों से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) का ताला लगा हुआ है। ये बेहद खराब स्थिति में हैं। पुराना किला से सटी दरगाह हजरत मटका पीर के गद्दीनशीन मोहम्मद कय्यूम अब्बासी कहते हैं कि कायदे से शेरशाह सूरी के इस स्मारक का संरक्षण होना चाहिए। वे एक धर्मनिरपेक्ष बादशाह थे।
दीनपनाह की जगह क्या : दरअसल जिधर पुराना किला है, वहां पर ही मुगल बादशाह हुमायूं ने अपनी राजधानी दीनपनाह का निर्माण करवाया था। पुराना किला का वर्तमान स्वरूप शेर शाह सूरी की देन है। सन 1545 में शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद उसके पुत्र इस्लाम शाह ने इसे पूरा किया। शेर शाह ने दीनपनाह को ज़मींदोज करके ही शेरगढ़ तामीर करवाया था। हालांकि दिल्ली पर 1555 में हुमायूं का फिर से कब्जा हो गया था। तो हुमायूं और शेरशाह सूरी का आपसी और दिल्ली से गहरा संबंध रहा। दोनों ने दिल्ली को समृद्ध भी किया। शेर शाह सूरी का मकबरा बिहार के सासाराम शहर में है। उधर, हुमायूं का मकबरा राजधानी में ही है।
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